शाह आलम द्वितीय
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (सितंबर 2014) स्रोत खोजें: "शाह आलम द्वितीय" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
बादशाह अब्दुल्लाह जलालुद्दीन अब्दुल मुज़फ़्फ़र हमुद्दीन मुहम्मद अली गौहर शाह-ए-आलम द्वितीय साहिब-ए-कुरान पादशाह गाज़ी | |||||
---|---|---|---|---|---|
मुगल सम्राट | |||||
शासनावधि | १० अक्टूबर १७६० - १९ नवम्बर १८०६ | ||||
पूर्ववर्ती | शाहजहां तृतीय | ||||
उत्तरवर्ती | अकबर शाह द्वितीय | ||||
जन्म | २५ जून १७२८ दिल्ली | ||||
निधन | १९ नवम्बर १८०६, (७८ वर्ष) लाल किला, दिल्ली | ||||
समाधि | |||||
जीवनसंगी | नवाब ताज महल बेगम साहिबा | ||||
संतान | ५० से अधिक संतानें | ||||
| |||||
राजवंश | तैमूरी | ||||
पिता | आलमगीर द्वितीय | ||||
माता | नवाब ज़ीनत महल साहिबा |
शाह आलम द्वितीय (१७२८-१८०६), जिसे अली गौहर भी कहा गया है, भारत का मुगल सम्राट रहा। इसे गद्दी शाहजहां (तृतीय) को हटाकर मिली। १४ सितंबर १८०३ को इसका राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गया और ये मात्र कठपुतली बनकर रह गया। १८०६ में इसकी मृत्यु हुई। १७५९ में अपने पिता आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी जाने के कारण वह मुगल राजधानी दिल्ली को छोड़कर पटना की ओर भाग गए जहां पर उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए इमाद उल मुल्क और शाहजहां (तृतीय) के विरुद्ध षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया और अपनी एक बहुत बड़ी सेना बनाई और उन्होंने शाहजहां (तृतीय) और इमादउल मुलक को हटाने के लिए सदाशिवराव भाऊ से सहायता मांगी सदाशिवराव भाऊ ने उनकी मदद की और इमादउल मुलक को खत्म कर शाहजहां (तृतीय) को गद्दी से हटाकर 1760 में शाह आलम को दिल्ली का मुगल सम्राट बनाया गया।[1] 1760 से लेकर 1806 तक इनका शासन काल रहा 1771 में मराठा सरदार महादजी शिंदे की सहायता से इन्होंने वापस दिल्ली की गद्दी को प्राप्त किया और महादाजी से प्रसन्न होकर उन्होंने उसे अमीरुल हमारा और वकील उल मुतल्क की उपाधि प्रदान की। 1764 में अवध के नवाब बंगाल के नवाब और मुगल सम्राट की सेनाओं ने बक्सर के युद्ध में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई भी लड़ी।बक्सर के युद्ध में उन्होंने अवध के नवाब सूजाउददौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम और खुद को ही अपनी बड़ी मुगल सेनाओं को लेकर बक्सर में पहुंचे जहां पर उन्हें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं से उनका सामना हुआ परंतु उस युद्ध में पराजित हुए और अंत में उन्हें 1765 में इलाहाबाद की संधि करनी पड़ी यह उनके लिए बहुत शर्मनाक हार थी। परंतु 1764 बक्सर के युद्ध में उन्हें अंग्रेजों के सामने हार गये। जिसके कारण मुगल सम्राट ने अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी इलाहाबाद की संधि के तहत सभी बंगाल सुबह की दीवानी अंग्रेजों को दे दी गई। अंग्रेजों की बहुत बड़ी सफलता थी। और मुगल कमजोर हो गए। 1764 से लेकर 1771 ईसवी तक वे अवध के नवाब के संरक्षण में रहे उस वक्त उनके बेटे ने मुगल दरबार का सभी राज्य का संभाला। परंतु 1771 में महादजी शिंदे के नेतृत्व में मराठा सेना ने वापस उन्हें दिल्ली का सुल्तान बनाया और दिल्ली की गद्दी वापस दिलाई। उन्होंने अपनी सेना को यूरोपियन तरीके से तैयार करने की पूरी कोशिश की जिसकी कमान उन्होंने मिर्जा नजफ खान जो कि परसिया से आए हुए थे और 1740 में में भारत आए थे उनको दी उन्होंने मुगल सेना को वापस तैयार करने की पूरी कोशिश की परंतु ऐसा करने में सफल नहीं हुए 1771 में उनकी मृत्यु हो गई। शाह आलम का ध्यान भारतीय कला की तरफ बिल्कुल नहीं था और वह एक कमजोर शासक थे हालांकि उन्होंने दिल्ली सल्तनत को वापस ताकतवर बनाने का पूरा प्रयास किया परंतु ऐसा करने में भी सफल नहीं हो सके महादजी सिंधिया की सहायता से अंग्रेजों से छूटे कि अंग्रेजों ने उन को कैद कर लिया था 1764 बक्सर के युद्ध में शाह आलम द्वितीय को पराजित करने के बाद उन्होंने महादजी शिंदे से प्रभावित होकर उन्हें कई सारी उपाधियां दी और उन्होंने संपूर्ण प्रयत्न किया कि मुगल साम्राज्य को एक बार फिर से खड़ा किया जाए परंतु ऐसा करने में उनके खुद के मंत्रियों और कई सारे भारतीय लोगों ने उनका साथ नहीं दिया। 1788 ई0 मे गुलाम कादिर जो रोहिला सरदार था। उसने शाह आलम को कैद कर लिया। और आलम की दोनों आंखें फोड़ दी और उनके बच्चों का रेप किया गया। कुछ बचने के लिए नदी में कूद गई। महादजी सिंधिया ने जल्द से दिल्ली पर आक्रमण किया और गुलाम कादिर को खत्म कर दिया। एक बार फिर शाह आलम को बचा लिया। 1803 में एक बार फिर अंग्रेजों ने दिल्ली पर आक्रमण किया और महादाजी सिंधिया के वारिस दौलतराव शिंदे को पराजित कर दिल्ली पर अपना कब्जा कर लिया। और मुगल सम्राट को कठपुतली मुगल सम्राट बना कर देना शुरू कर दिया मात्र एक नाम मात्र के सम्राट और अंग्रेजों ने उनके ऊपर राज करना शुरू कर दिया। इसके तहत संपूर्ण अंग्रेजों के हाथ में चली गई १८०६ मे उनकी मृत्यु हो गयी। उनका राज अपनी मृत्यु के समय से दिल्ली तक ही सीमित रह गया।
इसकी कब्र १३ शताब्दी के संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की महरौली में दरगाह के निकट एक संगमर्मर के परिसर में बहादुर शाह प्रथम (जिसे शाह आलम प्रथम भी कहा जाता है) एवं अकबर द्वितीय के साथ बनी है।
मुग़ल सम्राटों का कालक्रम
[संपादित करें]
पूर्वाधिकारी शाहजहां तृतीय |
मुगल सम्राट १७५९–१८०६ |
उत्तराधिकारी अकबर शाह द्वितीय |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "12 अगस्त : शाह आलम से संधि कर ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन में दखल की नींव रखी". Navbharat Times. अभिगमन तिथि 2021-07-31.